उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक ऐसा सनसनीखेज मामला सामने आया जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। सौरभ कुमार राजपूत की हत्या की खबर जितनी दिल दहला देने वाली थी, उससे कहीं ज्यादा खौफनाक था शव को ठिकाने लगाने का तरीका। सौरभ की पत्नी मुस्कान और उसके प्रेमी साहिल शुक्ला ने मिलकर न सिर्फ उसकी हत्या की, बल्कि उसके शव को काटकर ड्रम में डाल दिया और ऊपर से सीमेंट का घोल भर दिया। इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस वारदात ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया कि क्या अब इंसान के दिल में किसी के लिए कोई संवेदना नहीं बची?
जब मौत का सामान बना रोजमर्रा का सामान
सौरभ राजपूत की हत्या और उसके बाद शव को ड्रम में भरना, कोई पहला मामला नहीं है। लेकिन यह जरूर एक नई कड़ी जोड़ता है उन वीभत्स घटनाओं की सूची में, जहां हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए इंसान ने रोजमर्रा की चीजों को 'मौत के सामान' में तब्दील कर दिया। कभी फ्रिज, कभी बेडबॉक्स, कभी सेप्टिक टैंक और कभी ईंट भट्ठा... इन सब चीजों को हत्यारे अपने घिनौने इरादों को छुपाने का जरिया बना चुके हैं।
'ड्रम'—अब सिर्फ सामान रखने का नहीं, लाशें छुपाने का ज़रिया
ड्रम आमतौर पर घरों या फैक्ट्रियों में पानी, तेल या अन्य सामान रखने के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेकिन जब मेरठ पुलिस ने सौरभ राजपूत की हत्या की गुत्थी सुलझाई, तो जिस ड्रम से उसका शव बरामद हुआ, उसने एक नई बहस को जन्म दे दिया। क्या अब ड्रम भी उन चीजों में शामिल हो गया है जो लाशों को छुपाने और खत्म करने के लिए इस्तेमाल हो रही हैं?
दिल्ली का 'तंदूर कांड' जिसने सबकी रूह कंपा दी
अगर हम इस तरह की घटनाओं की शुरुआत देखें, तो 1995 का 'नैना साहनी तंदूर मर्डर केस' शायद सबसे पहली और चर्चित घटना थी। दिल्ली में कांग्रेस नेता सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर दी और उसके शव को रेस्टोरेंट के तंदूर में जलाने की कोशिश की। मक्खन डालकर उसे राख बनाने की यह कोशिश नाकाम रही, लेकिन इसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। उस समय यह खबर इतनी बड़ी थी कि लोगों ने तंदूर में बनी रोटियां खाना छोड़ दिया था।
कुकर—अब सिर्फ खाना बनाने के लिए नहीं
मनोज साहनी ने अपनी लिव-इन पार्टनर सरस्वती की हत्या करने के बाद उसके शव को टुकड़ों में काटकर कुकर में उबाल दिया। यह घटना मुंबई की है और जब पुलिस ने इस मामले का खुलासा किया, तो सबके रोंगटे खड़े हो गए। कुकर, जिसे हम हर दिन खाना पकाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वह हत्या के बाद शव के टुकड़े नष्ट करने का एक क्रूर साधन बन गया।
बैग—यात्रा के लिए नहीं, अब शव ले जाने का जरिया
शरीर के टुकड़े कर उन्हें बैग में भर देना, यह अपराधियों का नया तरीका बन गया है। हिमानी नाम की महिला की लाश भी इसी तरह रोहतक में एक बैग से बरामद हुई थी। आज बाजार में बड़े बैगों की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन यह डर भी बढ़ गया है कि कहीं कोई ऐसा बैग फिर किसी लाश की कहानी ना सुना दे।
बेडबॉक्स—आराम का स्थान या मौत का ठिकाना?
एक समय था जब लोग बेडबॉक्स में गर्म और ठंडे कपड़े रखते थे। लेकिन मेरठ में ही एक घटना सामने आई थी जिसमें एक बेडबॉक्स से पांच शव मिले थे। सोचिए, जिस जगह पर आप आराम करते हैं, वहीं अगर किसी की लाश छुपाई जाए तो...?
ईंट भट्ठा—शरीर से राख बनने तक की कहानी
राजस्थान का बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड भी कुछ ऐसा ही था। एक ताकतवर मंत्री और नेताओं ने सबूत मिटाने के लिए भंवरी देवी को ईंट भट्ठे में जलवा दिया। भट्ठे में जो जाता है, वो सिर्फ राख बनकर ही लौटता है। इसीलिए अपराधियों के लिए ये सबसे सुरक्षित जगह बन चुकी है।
सेप्टिक टैंक—जहां गंदगी जाती है, अब वहां भी लाशें मिलती हैं
शौचालय का गंदा पानी तो इसमें जाता ही है, लेकिन अब हत्यारे शवों को भी इसमें डाल देते हैं। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में एक सेप्टिक टैंक से चार शव बरामद हुए थे। यहां तक कि एक मुख्यमंत्री आवास से भी ऐसा ही मामला सामने आ चुका है।
दीवार—अब दीवारों में भी दब रही हैं जिंदगियां
पालघर, महाराष्ट्र में एक महिला के प्रेमी ने उसकी हत्या कर दी और उसके शव को दीवार के अंदर चुनवा दिया। यह कहानी आपको 'अनारकली' की याद दिला सकती है, लेकिन ये हकीकत है। दीवारें अब सिर्फ घरों की दीवारें नहीं रहीं, बल्कि कई बार ये लाशों की कब्र भी बन चुकी हैं।
फ्रिज—ठंडक की जगह अब खौफ
श्रद्धा वालकर मर्डर केस में आरोपी आफताब ने श्रद्धा के शरीर के टुकड़े कर फ्रिज में रख दिए थे। अब पुलिस जब भी किसी हत्या की जांच करती है, तो सबसे पहले फ्रिज का दरवाजा खोलती है। बड़े फ्रिज में आसानी से किसी भी आकार के शव को छुपाया जा सकता है, और यह लंबे समय तक शव को सुरक्षित भी रखता है।
जिंदा ताबूत—मरने के बाद ही नहीं, जीते जी भी दफन
मैसूर की राजकुमारी शकरे खलीली की हत्या के बाद उनके पति ने उन्हें जिंदा ताबूत में बंद कर दफना दिया। इसके बाद वह उसी आंगन में पार्टी करता था। यह घटना दिखाती है कि किस तरह इंसान अब संवेदनहीनता की हदें पार कर चुका है।
निष्कर्ष
मेरठ में सौरभ राजपूत की हत्या कोई अकेली घटना नहीं है। यह उस काली परंपरा का हिस्सा है, जिसमें इंसानों ने अपनी संवेदनाओं को ताक पर रख दिया है। हत्या के बाद शवों को छुपाने और नष्ट करने के तरीके लगातार बदल रहे हैं। ड्रम, फ्रिज, तंदूर, कुकर, बेडबॉक्स से लेकर दीवार और सेप्टिक टैंक तक... हर चीज अब शक के घेरे में है। सवाल यह है कि क्या अब हम अपने आस-पास की इन चीजों को वैसे ही देख पाएंगे जैसे पहले देखा करते थे?