नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' को लिखे जाने के 7 नवंबर 2025 को 150 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन गीत पर 1937 से चला आ रहा धार्मिक और राजनीतिक विवाद आज भी जस का तस बना हुआ है। इस लंबी बहस ने एक बार फिर तब सुर्खियां बटोरीं जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के सभी स्कूलों में इसका गायन अनिवार्य किया, जिसका मुस्लिम नेताओं ने कड़ा विरोध किया।
पीएम मोदी ने छेड़ा 1937 के विवाद का जिक्र
राष्ट्रीय गीत के 150 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1937 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हुए उस ऐतिहासिक विवाद का जिक्र किया, जिसे कई इतिहासकार देश के विभाजन के बीज बोने वाला टकराव मानते हैं।
इसके बाद, केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक महत्व और राष्ट्र-निर्माण में इसकी भूमिका पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव को 'SIR' (एक कथित जासूसी मामले) और 'वोट चोरी' जैसे अन्य ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने का जरिया करार दिया। इस बीच, 24 नवंबर 2025 को राज्यसभा सचिवालय ने एक बुलेटिन जारी कर सदन के अंदर और बाहर 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम्' के नारे लगाने पर रोक लगा दी थी, जिससे विवाद और गहरा गया।
संसद में आज राष्ट्रगीत पर चर्चा
इन सभी घटनाक्रमों के बीच, संसद के शीतकालीन सत्र में आज, 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे, 'वंदे मातरम्' पर चर्चा होगी। इस चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। यह चर्चा राष्ट्रगीत के महत्व, उसके विवादित पहलुओं और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भूमिका को केंद्र में रखेगी।
विवाद की जड़: 1937 का टकराव
'वंदे मातरम्' गीत को बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के मौके पर लिखा था और इसे अपने उपन्यास 'आनंद मठ' में प्रकाशित कराया। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया था।
1905 में मुस्लिम लीग के गठन के बाद, मुसलमानों ने आंदोलन के दौरान इसे गाने से इनकार कर दिया। उनका विरोध गीत के कुछ शब्दों को लेकर था, जिसमें 'मंदिर' और 'दुर्गा' जैसे शब्द थे, जिसे वे मूर्तिपूजा से जोड़ते थे और मानते थे कि यह उन पर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा का दबाव डालता है। विवाद सुलझाने के लिए महात्मा गांधी के आग्रह पर, 1937 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में यह तय किया गया कि 'वंदे मातरम्' के केवल पहले दो छंद ही गाए जाएंगे, जिन पर किसी को धार्मिक आपत्ति न हो।
राष्ट्रगान क्यों नहीं बन पाया?
मुस्लिम समुदाय के विरोध के कारण ही 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रगान (National Anthem) नहीं बनाया गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने धार्मिक भेदभाव की संभावना को देखते हुए 'जन गण मण' को राष्ट्रगान और 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत बनाने का सुझाव दिया था। अंततः, 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया जाएगा और केवल इसके पहले दो छंद ही गाए जाएंगे, ताकि देश की एकता बनी रहे।