मुंबई, 20 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। चुनाव आयोग ने शनिवार को स्पष्ट किया कि मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग और CCTV फुटेज को सार्वजनिक करना सही नहीं होगा क्योंकि इससे मतदाताओं और वोटिंग पैटर्न की पहचान आसानी से हो सकती है जिससे वे सामाजिक दबाव, भेदभाव या धमकी का शिकार हो सकते हैं। आयोग ने यह भी कहा कि इस तरह की फुटेज शेयर करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होगा। यह प्रतिक्रिया तब आई जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए CCTV फुटेज साझा करने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि वोटर लिस्ट मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में नहीं दी गई, CCTV फुटेज छिपाई गई और चुनाव की फोटो-वीडियो अब एक साल की जगह केवल 45 दिनों तक ही रखी जाएगी। राहुल ने कहा कि सबूत मिटाए जा रहे हैं और यह लोकतंत्र के लिए जहर साबित हो सकता है।
चुनाव आयोग ने बताया कि हाल ही में नियमों में बदलाव करते हुए तय किया गया है कि चुनावों के दौरान ली गई तस्वीरें, CCTV और वेबकास्टिंग फुटेज सिर्फ 45 दिनों तक सुरक्षित रखी जाएंगी और यदि उस अवधि में नतीजों को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती तो डेटा नष्ट कर दिया जाएगा। आयोग का कहना है कि कई बार इन फुटेज का गलत तरीके से इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाया गया जिससे मतदाताओं में संशय की स्थिति बनी। कांग्रेस पार्टी ने आयोग के इस निर्णय की कड़ी आलोचना करते हुए इसे लोकतंत्र विरोधी बताया। कांग्रेस का कहना है कि पहले ये डेटा एक साल तक रखा जाता था ताकि भविष्य में किसी तरह की जांच संभव हो सके लेकिन अब आयोग पारदर्शिता खत्म कर रहा है। पार्टी ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने वाला कदम बताया और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की।
चुनाव आयोग ने पहले भी दिसंबर 2024 में चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए मतदान केंद्रों की CCTV, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक करने से रोका था। यह फैसला चुनाव आयोग की सिफारिश पर कानून मंत्रालय द्वारा ‘द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961’ में संशोधन के बाद लिया गया था। अधिकारियों का कहना है कि इन फुटेज से AI के ज़रिए छेड़छाड़ करके फर्जी जानकारी फैलाई जा सकती है, जिससे मतदाताओं को भ्रमित किया जा सकता है। हालांकि इन रिकॉर्डिंग्स को उम्मीदवारों के लिए अब भी उपलब्ध रखा गया है, जबकि आम नागरिकों को इसे प्राप्त करने के लिए कोर्ट का रुख करना पड़ेगा। कांग्रेस ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और आरोप लगाया कि मोदी सरकार चुनाव आयोग के साथ मिलकर लोकतंत्र को कमजोर कर रही है और पारदर्शिता खत्म कर रही है।