भारत-चीन के संबंध राजनीतिक और रणनीतिक स्तर पर लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद कई भारतीय उद्योग क्षेत्रों को अभी भी चीन पर महत्वपूर्ण उत्पादों के मामले में निर्भर रहना पड़ता है। खासकर ऑटोमोबाइल, सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और कैमिकल इंडस्ट्रीज में चीन की भूमिका आज भी अहम बनी हुई है। हालांकि भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के बाद देश में कई उत्पादक इकाइयां स्थापित हुई हैं, जिससे निर्भरता कम हुई है, लेकिन चीन की ओर से आए दिन नए प्रतिबंध और नियंत्रण भारत की इंडस्ट्रीज के लिए चुनौती बने हुए हैं।
चीन ने बढ़ाई ऑटो इंडस्ट्री की टेंशन
हाल ही में चीन ने एक नया कदम उठाते हुए ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’ के निर्यात पर सख्त नियंत्रण लागू किया है, जिससे भारत की ऑटो इंडस्ट्री को बड़ी टेंशन का सामना करना पड़ रहा है। यह चुंबक इलेक्ट्रिक मोटर्स और अन्य कई हाईटेक उपकरणों में बेहद आवश्यक होते हैं। चीन ने इस उत्पाद के निर्यात के लिए अब ‘एंड यूज सर्टिफिकेट’ (End Use Certificate) को अनिवार्य कर दिया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद का उपयोग किस लिए किया जाएगा। बिना इस सर्टिफिकेट और सरकारी लाइसेंस के कोई भी कंपनी चीन से रेयर अर्थ मैग्नेट्स का आयात नहीं कर सकती।
नए नियम का प्रभाव
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय ऑटो उद्योग के शीर्ष अधिकारियों ने पिछले सप्ताह सरकार के सामने इस समस्या को उठाया। उनका कहना है कि इस नए नियम के कारण उत्पादन पर गहरा असर पड़ सकता है और यदि समस्या का समाधान नहीं निकला तो कुछ ही दिनों में उत्पादन पूरी तरह ठप हो सकता है। चीन के पोर्ट्स पर कई कंटेनर भी निर्यात के इंतजार में फंसे हुए हैं, जिससे सप्लाई चेन बाधित हो रही है।
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस मामले को प्राथमिकता से सुलझाया जाए क्योंकि पार्ट्स मैन्युफैक्चरर्स के पास मई के अंत तक मात्र सीमित स्टॉक बचा है। जून की शुरुआत से इसका असर भारतीय ऑटो इंडस्ट्री पर नजर आने लगेगा।
मारुति का बयान और इंडस्ट्री की स्थिति
मारुति सुजुकी के सीनियर एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (कॉर्पोरेट अफेयर्स) राहुल भारती ने इस मुद्दे पर कहा कि यह प्रतिबंध नहीं, बल्कि एक प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें एंड यूज सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि यदि कोई समस्या होगी तो वे स्टॉक एक्सचेंज और सभी स्टेकहोल्डर्स को सूचित करेंगे। हालांकि, मारुति की कुछ कार मॉडल के प्रोडक्शन पर जून की शुरुआत में असर पड़ सकता है, यदि समस्या का जल्द समाधान नहीं निकला।
चीन का बाजार कब्जा और वैश्विक स्थिति
रेयर अर्थ मैग्नेट्स के मामले में चीन का विश्व बाजार में लगभग 90% कब्जा है। चीन सालाना लगभग 1,40,000 मीट्रिक टन की खपत करता है, जबकि दूसरे नंबर पर अमेरिका है, जहां 38,000 मीट्रिक टन उत्पादन होता है। अमेरिका को भी रेयर मैग्नेट्स का आयात करना पड़ता है। यह चुंबक खासतौर पर ऑटोमोबाइल, क्लीन एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और घरेलू उपकरणों में इस्तेमाल होता है। इसलिए चीन का यह कदम वैश्विक सप्लाई चेन में भारी प्रभाव डाल रहा है।
इलेक्ट्रिक वाहनों पर असर
चीन ने अप्रैल महीने में इस नियम को लागू किया था, जिससे कंपनियों को इम्पोर्ट परमिट लेना अनिवार्य हो गया। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बढ़ती मांग को देखते हुए यह कदम भारतीय कंपनियों के लिए चिंता का विषय बन गया है। मारुति अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार ‘ई विटारा’ को लॉन्च करने की तैयारी कर रही है, वहीं टीवीएस मोटर कंपनी भी इस समस्या से प्रभावित हो सकती है।
भारत सरकार भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गई है। कर्नाटक के हेवी इंडस्ट्रीज मिनिस्टर एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा कि सरकार जल्द ही चीन के साथ बातचीत के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजेगी, ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके।
रेयर अर्थ मैग्नेट क्या है?
रेयर अर्थ मैग्नेट मिश्रधातुओं से बना एक अत्यंत मजबूत स्थायी चुंबक होता है, जो 1970 और 1980 के दशक में विकसित किया गया। इसे सबसे मजबूत स्थायी चुंबक माना जाता है, जो अन्य चुंबकों की तुलना में अधिक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। इसके प्रमुख प्रकार नियोडिमियम (Nd-Fe-B) और सैमरियम कोबाल्ट (SmCo) हैं।
ऑटो इंडस्ट्री में इसकी अहमियत
रेयर अर्थ मैग्नेट्स इलेक्ट्रिक मोटर्स के ‘दिल’ के समान हैं। बैटरी चालित वाहनों में इलेक्ट्रिक मोटर की कार्यक्षमता इसी चुंबक पर निर्भर करती है। नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन जैसे चुंबक इलेक्ट्रिक मोटर्स के लिए सबसे जरूरी होते हैं। इन्हें ब्रेकिंग सिस्टम, पावर स्टीयरिंग, विंडस्क्रीन वाइपर मोटर और म्यूजिक सिस्टम जैसे ऑटोमोबाइल के कई हिस्सों में इस्तेमाल किया जाता है।
निष्कर्ष
चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट के निर्यात पर लगाए गए ये सख्त नियम भारत की ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। यह स्पष्ट कर देते हैं कि भारत को इस तरह के महत्वपूर्ण कच्चे माल की घरेलू आपूर्ति व्यवस्था मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम करना होगा। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की जरूरत इसी समय और अधिक बढ़ जाती है ताकि विदेशी निर्भरता कम हो और भारत की इंडस्ट्रीज को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती मिले। इसके साथ ही सरकार की पहल और चीन के साथ कूटनीतिक वार्ता भी आवश्यक है ताकि इस सप्लाई संकट को जल्दी से जल्दी खत्म किया जा सके।