2025 की गर्मियों में दुनिया उस मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां किसी भी क्षण जंग भड़क सकती है। ईरान और इजराइल के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव ने अब युद्ध का रूप ले लिया है। बुधवार सुबह ईरान ने इजराइल की राजधानी तेल अवीव पर ‘फत्ताह’ मिसाइलें दागकर इस जंग की आधिकारिक शुरुआत कर दी। इससे पहले ईरान ने हिब्रू भाषा में एक चेतावनी संदेश जारी किया था, जिसमें तेल अवीव के नागरिकों को जल्द से जल्द शहर छोड़ने की सलाह दी गई थी।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के आक्रामक तेवर
इस युद्ध को और गंभीर बना रही है अमेरिका की संभावित भागीदारी। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अभी अंतरिम राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, जी7 समिट के दौरान कनाडा से जल्दी लौट आए और वाशिंगटन डीसी स्थित व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ एक आपातकालीन बैठक की। लगभग 80 मिनट की इस बैठक के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ईरान को धमकाते हुए तीन ट्वीट किए, जिनमें स्पष्ट रूप से ईरान को सरेंडर करने की चेतावनी दी गई।
क्या अमेरिका युद्ध में कूदेगा?
हालांकि अमेरिका की तरफ से अब तक युद्ध में शामिल होने का आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन इजराइल की बढ़ती कमजोरी और प्रधानमंत्री नेतन्याहू का व्हाइट हाउस पर दबाव यह संकेत दे रहा है कि अमेरिका जल्द ही जमीनी या हवाई कार्रवाई में उतर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो यह सिर्फ एक सीमित संघर्ष नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे मिडिल ईस्ट को युद्ध की आग में झोंक सकता है।
ईरान की पलटवार की रणनीति
ईरान भी इस युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार दिखाई दे रहा है। अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यदि अमेरिका युद्ध में शामिल होता है तो ईरान की योजना है कि वह ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ को बंद कर देगा। यह दुनिया के तेल व्यापार के लिए सबसे अहम समुद्री मार्ग है, और यदि यह बंद हो गया, तो कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। यही नहीं, इससे वैश्विक सप्लाई चेन और आर्थिक स्थिरता पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
अमेरिका ने सैनिकों को किया हाई अलर्ट पर
वर्तमान में अमेरिका ने UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन जैसे मिडिल ईस्ट देशों में तैनात अपने करीब 40,000 सैनिकों को हाई अलर्ट पर रख दिया है। वहीं, ब्रिटेन ने भी अपने लड़ाकू विमानों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने का आदेश दिया है। इससे संकेत मिलता है कि पश्चिमी देश इस युद्ध में किसी भी क्षण सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
क्या मित्र देश साथ आएंगे?
यदि अमेरिका इस युद्ध में उतरता है, तो उसके मित्र देश – ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देश भी खुलकर इजराइल के पक्ष में आ सकते हैं। दूसरी तरफ, रूस और चीन पहले ही ईरान के पक्ष में खड़े हो चुके हैं। ऐसे में दुनिया एक बार फिर “ब्लॉक पॉलिटिक्स” की ओर लौट रही है, जैसा कि शीत युद्ध के दौर में देखा गया था।
मिडिल ईस्ट के देश क्या करेंगे?
सऊदी अरब, यूएई जैसे बड़े मिडिल ईस्ट देश खुद को इस युद्ध से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यदि अमेरिका उनके सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल करता है तो ये देश युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल माने जाएंगे। हालांकि इन देशों के लिए ऊर्जा व्यापार और घरेलू सुरक्षा प्राथमिकता है, इसलिए वे खुले समर्थन से बच सकते हैं।
युद्ध का वैश्विक प्रभाव
अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो इसकी सबसे बड़ी मार वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगी। तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जिससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। वैश्विक शेयर बाजारों में भारी गिरावट आ सकती है और महंगाई की लहर दुनियाभर में फैल सकती है।
निष्कर्ष
ईरान और इजराइल के बीच शुरू हुआ यह संघर्ष अब सिर्फ दो देशों की लड़ाई नहीं रह गया है। अमेरिका की संभावित भागीदारी, रूस-चीन का ईरान के साथ गठजोड़ और पश्चिमी देशों का इजराइल को समर्थन – यह सब मिलकर इसे एक बहुपक्षीय युद्ध में बदल सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया एक बार फिर युद्ध की कगार पर है – और यह जंग केवल मिसाइलों और बंदूकों से नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था, ऊर्जा, डिप्लोमेसी और साइबर ताकत से भी लड़ी जाएगी।
अब दुनिया को केवल एक चीज बचा सकती है – और वो है कूटनीति।