मुंबई, 20 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सऊदी अरब जल्द ही पाकिस्तान में तांबा और सोने के खनन से जुड़े प्रोजेक्ट में 8.34 हजार करोड़ का निवेश करेगा। सऊदी के विदेश मंत्री फैजल बिन फरहान अल सऊद हाल ही में 2 दिन के पाकिस्तान दौरे पर गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसी दौरान दोनों देशों के बीच डील पर चर्चा हुई। वहीं शुक्रवार को पाक आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने भी सऊदी के सहायक रक्षा मंत्री मेजर जनरल अब्दुल्लाह अल-ओताइबी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों के बीच डिफेंस प्रोडक्शन और मिलिट्री ट्रेनिंग पर भी चर्चा हुई। इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ईद-उल-फितर के मौके पर सऊदी अरब गए थे। वहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने उन्हें इफ्तार पार्टी का न्योता दिया था। पाकिस्तान में आर्थिक तंगहाली और राजनीतिक उठापटक के बीच सऊदी हमेशा से उसके साथ खड़ा रहा है। द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल जुलाई में सऊदी ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर का लोन दिया था। 2020 तक पाकिस्तान को कर्ज देने वाले देशों में सऊदी पहले नंबर पर था।
तो वहीं, BBC की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने कार्यकाल में 32 विदेश दौरे किए थे। इनमें से 8 विदेश यात्राएं सऊदी अरब की थीं। 2021 में इमरान की सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री बने शाहबाज शरीफ भी अपने पहले विदेश दौरे पर सऊदी ही गए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों का पहले विदेश दौरे पर सऊदी जाना आम बात है। इसकी प्रमुख वजह पाकिस्तान को सऊदी से मिलने वाला पैसा है। सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था की तेल पर निर्भरता को कम करना चाहता है। ऐसे में वो ट्रेड के लिए नए पार्टनर ढूंढ रहा है। भारत भी उनमें से एक है। हालांकि, वो पाकिस्तान को बहुत ज्यादा खफा नहीं कर सकता है। इसकी एक बड़ी वजह ईरान है। 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान में शिया धर्मगुरुओं को सत्ता मिल गई। ईरान के शिया बहुल देश होने की वजह से सऊदी अरब इस क्रांति से बेहद डरा हुआ था। इसे काउंटर करने के लिए सऊदी अरब ने पाकिस्तान, भारत समेत सुन्नी मुस्लिम वाले देशों में पैसा भेजना शुरू किया। इससे वहाबी मुस्लिम दुनिया भर के देशों में मजबूत हुआ और इस पूरे क्षेत्र में सूफी इस्लाम की मौजूदगी कम हुई। सालों से ईरान और सऊदी के बीच मिडिल ईस्ट में दबदबे की लड़ाई है। इसके लिए सऊदी पाकिस्तान को अपने खेमे में रखना चाहता है।
आपको बता दें, सऊदी अरब हमेशा से पाकिस्तान की आर्थिक तौर पर काफी मदद करता रहा है। पिछले साल जुलाई में सऊदी ने पाकिस्तान को आर्थिक तंगहाली के बीच 2 अरब डॉलर का लोन दिया था। 2020 तक पाकिस्तान को कर्ज देने वाले देशों में सऊदी पहले नंबर पर था। पाकिस्तान को आर्थिक मदद देकर सऊदी रणनीतिक रूप से अपनी पोजिशन को मजबूत करना चाहता है। दरअसल, पाकिस्तान से ईरान का 909 किलोमीटर का बॉर्डर लगता है। पाकिस्तान से निष्कासित पत्रकार ताहा सिद्दीकी के मुताबिक सऊदी आर्थिक पैकेज और निवेश के जरिए पाकिस्तानी सरकार की वफादारी खरीद रहा है। सऊदी अपने हिसाब से पाकिस्तान की सीमाओं पर नीति बनवाता है। सऊदी अरब में मक्का और मदीना होने की वजह से ये इस्लामिक दुनिया के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसीलिए सऊदी अरब फिलिस्तीन को इजराइल का हिस्सा मानने से बचता है। अगर गलती से भी सऊदी ने ऐसा किया तो इससे उसके इस्लामिक प्रतिबद्धता पर लोग सवाल उठाने लगेंगे। इस मामले में पाकिस्तान का भी यही रुख है। एक जैसी विदेश नीति दोनों देशों को करीब लाती है।
तो वहीं, 'द डिप्लोमैट' की रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान सरकार से ज्यादा वहां की सेना अहम है। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तानी सेना दुनिया की 20वीं सबसे ताकतवर सेना है। इस वक्त सऊदी में करीब 70 हजार पाकिस्तानी सैनिक हैं। 2018 में इमरान खान ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि- ‘सऊदी अरब में मक्का और मदीना है। ऐसे में वहां कोई खतरा आता है तो पाकिस्तानी सेना ही नहीं यहां के लोग भी सऊदी की रक्षा करेंगे।’ पाकिस्तान भले ही अमेरिका और ब्रिटेन से सबसे ज्यादा हथियार खरीदता हो, लेकिन जब परमाणु हथियार की जरूरत हुई तो इन देशों ने मना कर दिया। सऊदी अरब को यह बात अच्छी तरह से पता है कि पाकिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जो सऊदी अरब को एक इशारे पर परमाणु टेक्नोलॉजी या हथियार मुहैया करा सकता है।