शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 24 पैसे गिरकर नए रिकॉर्ड निचले स्तर 90.56 पर पहुंच गया। रुपया में आई इस भारी गिरावट के पीछे मुख्य रूप से भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर बनी अनिश्चितता और बाजार से लगातार विदेशी निवेश की निकासी रही, जिसने निवेशकों के मनोबल को कमजोर किया है।
फॉरेन करेंसी ट्रेडर्स का कहना है कि कीमती धातुओं की वैश्विक कीमतों में उछाल के बीच आयातकों द्वारा डॉलर की आक्रामक खरीद के कारण भी रुपये पर दबाव बना हुआ है। इंटरबैंक फॉरेन एक्सचेंज बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.43 पर खुला, फिर और गिरकर 90.56 पर आ गया, जो पिछले बंद भाव 90.32 से 24 पैसे की गिरावट दर्शाता है। गुरुवार को भी रुपया 38 पैसे गिरकर सर्वकालिक निचले स्तर 90.32 पर बंद हुआ था।
आरबीआई और ट्रेड डील पर निगाहें
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने बताया कि आज के लिए रुपया 90 से 90.60 के दायरे में रह सकता है। उन्होंने कहा कि आरबीआई के एक्शन पर भी कड़ी नजर रखना काफी जरूरी है।
आज भारतीय और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के बीच दो दिवसीय वार्ता का अंतिम दिन भी है और बाजार को उम्मीद है कि इसके बाद किसी समझौते की घोषणा की जाएगी। ख़बरों के अनुसार, पहले फेज में भारत पर रूसी तेल खरीदने पर जो 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा है, उसे हटाया जा सकता है, जो रुपये के लिए कुछ राहत ला सकता है।
डॉलर इंडेक्स और कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी
इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं की बास्केट के मुकाबले डॉलर की मजबूती का आकलन करने वाला डॉलर सूचकांक 0.02 प्रतिशत बढ़कर 98.37 पर कारोबार कर रहा था। वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 0.67 प्रतिशत बढ़कर 61.69 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था, जो आयात बिल बढ़ने की चिंता से रुपये पर और दबाव डाल रहा है।
घरेलू शेयर बाजार में हालांकि तेजी देखने को मिली, जहाँ सेंसेक्स 170.40 अंक बढ़कर 84,988.53 पर और निफ्टी 98.40 अंक बढ़कर 25,996.95 पर कारोबार कर रहा था। बावजूद इसके, एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने गुरुवार को 2,020.94 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो रुपये की कमजोरी का एक प्रमुख कारण रहा।
रुपये में गिरावट के चार प्रमुख कारण
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भारत-अमेरिका ट्रेड पर अनिश्चितता: व्यापार समझौते (BTA) के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय न होने के कारण मुद्रा पर दबाव बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपनी बातचीत को “सौहार्दपूर्ण और सार्थक” बताया, लेकिन उन्होंने व्यापार समझौते या भारतीय निर्यात पर लगाए जा रहे दंडात्मक अमेरिकी टैरिफ का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया।
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विदेशी पूंजी की निकासी (FII Outflow): विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा बाजार से लगातार पैसा निकालना रुपये को कमजोर कर रहा है।
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आयातकों द्वारा डॉलर की आक्रामक खरीद: कीमती धातुओं की बढ़ती वैश्विक कीमतों के कारण आयातकों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ी है।
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डॉलर इंडेक्स में मजबूती: वैश्विक स्तर पर डॉलर का मजबूत होना भी रुपये पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।