भारतीय करेंसी मार्केट से एक बड़ी और राहत भरी खबर सामने आई है। लगातार तीसरे दिन भारतीय रुपया (INR) अमेरिकी डॉलर (USD) के मुकाबले मजबूती की 'हैट्रिक' लगाने में सफल रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि रुपया अब मनोवैज्ञानिक स्तर 90 को पार कर 89 के स्तर पर आ गया है। पिछले तीन दिनों के भीतर रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से 1.25 फीसदी तक रिकवर कर चुका है।
रुपए की मजबूती के प्रमुख कारण
बाजार विशेषज्ञों और आंकड़ों के विश्लेषण से रुपए में आई इस अचानक तेजी के पीछे चार प्रमुख कारण नजर आ रहे हैं:
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RBI का हस्तक्षेप: मंगलवार को जब रुपया पहली बार 91 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर पर गिरा, तब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बाजार में संभावित हस्तक्षेप किया। डॉलर की सप्लाई बढ़ाकर केंद्रीय बैंक ने रुपए की गिरावट को थामने का प्रयास किया।
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कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट: भारत अपनी तेल जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे (लगभग 59 डॉलर) आ गई हैं। तेल सस्ता होने से डॉलर की मांग कम हुई है, जिसका सीधा फायदा रुपए को मिला है।
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विदेशी निवेश (FPI/FII): भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। कंपनियों में डॉलर की आवक बढ़ने से विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती मिली है।
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ओमान के साथ एफटीए (FTA): भारत और ओमान के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते ने भी सेंटीमेंट को सकारात्मक बनाया है। इससे भविष्य में द्विपक्षीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जगी है।
करेंसी मार्केट के ताजा आंकड़े
शुक्रवार को विदेशी मुद्रा बाजार में रुपए की चाल काफी उत्साहजनक रही:
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शुरुआती कारोबार: रुपया 90.19 पर खुला और जल्द ही 89.96 के स्तर को छू लिया।
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पिछले बंद के मुकाबले बढ़त: यह गुरुवार के बंद भाव (90.20) के मुकाबले 24 पैसे की मजबूती है।
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रिकॉर्ड लो से रिकवरी: मंगलवार को रुपया 91.10 के करीब था, जहाँ से अब तक इसमें 1.25% का सुधार हो चुका है।
चुनौतियां अभी भी बरकरार
रुपए में सुधार के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि संकट पूरी तरह टला नहीं है। इसके पीछे कुछ वैश्विक आर्थिक और कूटनीतिक कारण हैं:
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अमेरिका के साथ ट्रेड डील: भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौतों पर फिलहाल कोई ठोस बात नहीं बन पाई है।
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अमेरिकी टैरिफ: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए सख्त टैरिफ की मार भारतीय निर्यातकों पर बनी हुई है, जो डॉलर की स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।
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अमेरिकी मुद्रास्फीति (CPI): हालांकि अमेरिकी सीपीआई के आंकड़े उम्मीद से कम रहे हैं, लेकिन डेटा कलेक्शन की कमी के कारण अगले महीने के आंकड़ों को लेकर बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।
भविष्य का अनुमान
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स के विशेषज्ञों के अनुसार, सट्टेबाजों के बाजार से हटने के कारण डॉलर की आक्रामक खरीदारी में कमी आई है। वर्तमान में रुपया 90.00 से 90.50 के दायरे में स्थिर होने की कोशिश कर रहा है। यदि कच्चे तेल की कीमतें इसी तरह नरम बनी रहती हैं और निर्यात में सुधार होता है, तो रुपया 89 के स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है।