गुजरात सरकार राज्य में विवाह पंजीकरण (Marriage Registration) की प्रक्रिया में एक ऐतिहासिक और बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। विशेष रूप से 'लव मैरिज' या घर से भागकर शादी करने वाले जोड़ों के लिए अब कानूनी डगर कठिन होने वाली है। सरकार का मुख्य उद्देश्य सामाजिक ढांचे को सुरक्षित रखना और विवाह जैसी संस्था में पारदर्शिता लाना है।
Class 2 अधिकारी की मंजूरी अनिवार्य
प्रस्तावित नए नियमों के अनुसार, अब विवाह पंजीकरण की शक्ति केवल तलाटी-कम-मंत्री के पास नहीं रहेगी। वर्तमान व्यवस्था में ग्राम स्तर पर तलाटी ही पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा कर देता था, लेकिन अब इसमें एक नया स्तर जोड़ा जा रहा है।
नए संशोधन के बाद, तलाटी केवल दस्तावेजों की प्रारंभिक जांच और आवेदन प्रक्रिया पूरी करेगा। इसके बाद उस आवेदन को अंतिम मंजूरी के लिए वर्ग-2 (Class 2) के उच्च अधिकारी के पास भेजा जाएगा। जब तक यह वरिष्ठ अधिकारी अपनी आधिकारिक मुहर नहीं लगा देता, तब तक विवाह पंजीकरण को वैध नहीं माना जाएगा। यह कदम फर्जीवाड़े और जल्दबाजी में होने वाले पंजीकरणों को रोकने के लिए उठाया जा रहा है।
'पेरेंटल नोटिस' और 30 दिन की समय सीमा
सरकार के इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अभिभावकों की सहमति और सूचना से जुड़ा है। नए नियमों के तहत:
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यदि कोई जोड़ा भागकर शादी करता है और पंजीकरण के लिए आवेदन करता है, तो संबंधित विभाग द्वारा उनके माता-पिता को एक 'ऑफिशियल नोटिस' भेजा जाएगा।
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नोटिस मिलने के बाद माता-पिता या अभिभावकों के पास 30 दिनों का समय होगा, जिसके भीतर वे अपनी कोई भी आपत्ति (Objection) दर्ज करा सकते हैं।
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यह नियम सुनिश्चित करेगा कि माता-पिता को अंधेरे में रखकर शादी न की जा सके और परिवार को अपनी बात रखने का कानूनी मौका मिले।
सामाजिक संगठनों का बढ़ता दबाव
गुजरात सरकार का यह कदम अचानक नहीं आया है। लंबे समय से राज्य के विभिन्न प्रभावशाली समाज, विशेषकर पाटीदार समाज, इस संबंध में मांग कर रहे थे। पाटीदार समाज का तर्क था कि भागकर की जाने वाली शादियों में माता-पिता के हस्ताक्षर अनिवार्य होने चाहिए ताकि पारिवारिक विघटन को रोका जा सके।
हाल ही में ब्रह्म समाज ने भी इस मांग को अपना समर्थन दिया है। ब्रह्म समाज के नेताओं ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अनुरोध किया था कि विवाह के पंजीकरण में अभिभावक की भूमिका को मजबूत किया जाए। इसके साथ ही ब्रह्म समाज ने स्थानीय निकाय चुनावों में EWS (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) कोटा के आधार पर आरक्षण की भी मांग की है।
कैबिनेट की मुहर का इंतजार
सूत्रों के अनुसार, कल होने वाली कैबिनेट बैठक में इन प्रस्तावित संशोधनों पर चर्चा की जाएगी और इसे हरी झंडी मिल सकती है। यदि यह कानून लागू होता है, तो गुजरात संभवतः देश का ऐसा पहला राज्य बनेगा जहां विवाह पंजीकरण में माता-पिता की भूमिका को इस स्तर पर अनिवार्य बनाया गया है।
सरकार का मानना है कि इस कानून से सामाजिक सद्भाव बना रहेगा और युवाओं द्वारा आवेश में आकर लिए गए उन फैसलों पर अंकुश लगेगा जो बाद में पारिवारिक कलह का कारण बनते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का एक वर्ग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार के नजरिए से भी देख रहा है, जिस पर भविष्य में कानूनी बहस संभव है।