कांग्रेस नेता और असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने नलबाड़ी जिले में क्रिसमस बाजारों में बजरंग दल के कथित सदस्यों द्वारा की गई तोड़फोड़ की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इस घटना को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए भाजपा के नेतृत्व वाली असम सरकार पर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रहने का गंभीर आरोप लगाया है। सैकिया का कहना है कि इस तरह की घटनाएं राज्य में धार्मिक सद्भाव को कमजोर कर रही हैं और समाज को विभाजन की ओर धकेल रही हैं।
देबब्रत सैकिया ने मीडिया से बातचीत में कहा कि नलबाड़ी में जो कुछ हुआ, वह असम की गंगा-जमुनी तहजीब और आपसी भाईचारे के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “यह घटना बेहद दुखद है और यह दिखाती है कि राज्य में धार्मिक सहिष्णुता किस तरह से खतरे में है। एक ओर प्रधानमंत्री दिल्ली में ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘सबको गले लगाने’ की बात करते हैं, यहां तक कि सांता क्लॉज की टोपी पहनकर संदेश देते हैं, वहीं दूसरी ओर उनसे जुड़े सहयोगी संगठनों के लोग जमीनी स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों को डराने-धमकाने का काम कर रहे हैं।”
संविधान का अनुच्छेद 25 खतरे में – देबब्रत सैकिया
कांग्रेस नेता ने कहा कि असम में संविधान के अनुच्छेद 25, जो हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार देता है, को खुलेआम चुनौती दी जा रही है। सैकिया ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस पर मूकदर्शक बनी हुई है। उन्होंने कहा, “अनुच्छेद 25 खतरे में है और असम सरकार आंखें मूंदे बैठी है। दुर्भाग्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री स्वयं कई बार ऐसे भाषण देते हैं, जिनसे समाज में डर और विभाजन का माहौल बनता है।”
उन्होंने आगे कहा कि सरकार विकास के मोर्चे पर अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए जानबूझकर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दे रही है। बेरोजगारी, महंगाई, बुनियादी सुविधाओं की कमी और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो असम के भविष्य के लिए खतरनाक है।
शासन की विफलताओं से ध्यान हटाने की कोशिश
देबब्रत सैकिया ने कहा कि असम हमेशा से विविध संस्कृतियों, धर्मों और समुदायों का संगम रहा है। यहां सभी त्योहार मिल-जुलकर मनाए जाते रहे हैं। लेकिन मौजूदा सरकार के कार्यकाल में समाज में अविश्वास और डर का माहौल बनाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि विभाजनकारी राजनीति के जरिए जनता को बांटकर सत्ता में बने रहने की कोशिश की जा रही है, जो लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है।
छह समुदायों को एसटी दर्जा देने की मांग दोहराई
इस दौरान सैकिया ने असम के छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की लंबे समय से लंबित मांग को भी दोहराया। उन्होंने भाजपा पर इस मुद्दे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का आरोप लगाते हुए कहा, “छह समुदायों को एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। यह मांग कोई नई नहीं है। भाजपा सरकार ने केवल चुनावी लाभ के लिए इस मुद्दे को वर्षों से लटकाकर रखा है।”
उन्होंने 1996 की अमराई प्रधान समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उस समय ही सभी सिफारिशें स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी थीं। बावजूद इसके, असम में भाजपा के लगभग दस साल के शासन में भी बाद की समिति रिपोर्टों के आधार पर कोई ठोस और निर्णायक कदम नहीं उठाया गया। सैकिया ने कहा कि इससे साफ है कि सरकार की प्राथमिकताओं में आम लोगों के अधिकार और सामाजिक न्याय शामिल नहीं हैं।
अंत में, देबब्रत सैकिया ने राज्य सरकार से मांग की कि नलबाड़ी की घटना की निष्पक्ष जांच कराई जाए, दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में किसी भी समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हर स्तर पर संविधान और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष करती रहेगी।