अमेरिका में ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच चल रहा विवाद अब गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है और यह मामला फेडरल कोर्ट तक पहुँच चुका है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने 21 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के खिलाफ 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 18 हजार करोड़ रुपये) की फंडिंग रोकने को लेकर मुकदमा दायर किया है। यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन एम गार्बर ने ट्रंप प्रशासन पर आरोप लगाया कि उसने अभूतपूर्व और अनुचित नियंत्रण करने की कोशिश की है और यह कदम यूनिवर्सिटी की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर कर कहा है कि ट्रंप प्रशासन ने फेडरल फंडिंग के रूप में अरबों डॉलर रोककर विश्वविद्यालय के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। इस मुकदमे में हार्वर्ड ने दावा किया कि ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई ने विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर प्रतिकूल असर डाला है और इसके लॉन्ग टर्म परिणाम हो सकते हैं। इससे पहले, ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को दी जाने वाली 9 अरब डॉलर की फंडिंग की समीक्षा शुरू की थी और 2.3 अरब डॉलर की फंडिंग को पहले ही फ्रीज कर दिया था।
हार्वर्ड का बयान
हार्वर्ड के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने इस मामले पर वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए बयान में कहा, “सरकार का यह अतिक्रमण गंभीर और दीर्घकालिक परिणाम उत्पन्न करेगा।” उन्होंने चेतावनी दी कि फंडिंग में कटौती के कारण कई महत्वपूर्ण रिसर्च प्रोग्राम प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें चाइल्ड कैंसर, संक्रामक रोग प्रकोप और घायल सैनिकों की मदद से जुड़े रिसर्च शामिल हैं। गार्बर ने कहा कि इस तरह की फंडिंग में कटौती से नवाचार और प्रगति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
ट्रंप प्रशासन की दखलअंदाजी
11 अप्रैल को, ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को एक पत्र भेजा था, जिसमें सुधारों की मांग की गई थी। प्रशासन ने कहा था कि हार्वर्ड को एडमिशन पॉलिसी, स्टूडेंट क्लब और विविधता को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव करना चाहिए। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड से यह भी अनुरोध किया था कि वह अपने विश्वविद्यालय में कुछ स्टूडेंट क्लबों को मान्यता देना बंद कर दे। इससे पहले, ट्रंप प्रशासन ने 3 अप्रैल को भी हार्वर्ड से अपने गवर्नेंस, एडमिशन और हायरिंग प्रोसेस पर सरकार का नियंत्रण स्थापित करने की मांग की थी।
ट्रंप प्रशासन का एक्शन
हार्वर्ड द्वारा इन मांगों को असंवैधानिक बताते हुए खारिज किए जाने के बाद, ट्रंप प्रशासन ने 2.2 बिलियन डॉलर से अधिक की फेडरल ग्रांट और 6 करोड़ डॉलर के सरकारी कॉन्ट्रैक्ट की फंडिंग रोक दी थी। जॉइंट टास्क फोर्स टू कॉम्बैट एंटी-सेमिटिज्म ने बयान जारी कर कहा था कि हार्वर्ड का यह कदम चिंता का विषय है, क्योंकि यह दिखाता है कि हार्वर्ड सरकारी फंडिंग तो प्राप्त करना चाहता है, लेकिन कानूनों का पालन नहीं करना चाहता।
भविष्य की राह
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इस मामले को लेकर अदालत में अपनी स्थिति मजबूती से रखी है और उम्मीद जताई है कि अदालत से उसे न्याय मिलेगा। इस विवाद ने अमेरिकी उच्च शिक्षा प्रणाली, सरकारी नियंत्रण और संविधानिक अधिकारों पर एक बड़ा सवाल खड़ा किया है। इसके साथ ही, यह मामला अमेरिका में सरकारी हस्तक्षेप के मुद्दे को भी महत्वपूर्ण बना सकता है, जो आने वाले समय में और भी राजनीतिक चर्चाओं का कारण बनेगा।