नर्स निमिषा प्रिया का मामला पिछले कई वर्षों से चर्चा में है। यमन में 2017 में तलाल अब्दो मेहदी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार निमिषा को यमन की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। 16 जुलाई को उनकी फांसी की तारीख तय हो चुकी है, जिसके बाद उनकी जान बचाने के लिए उनके पैरवीकर्ता सैमुअल जैरोम आखिरी कोशिशें कर रहे हैं। सैमुअल, जो खुद भारतीय नागरिक हैं और यमन में करीब 20 साल से रह रहे हैं, निमिषा के मामले को देख रहे हैं और मृतक के परिवार के साथ माफी और ब्लड मनी की बातचीत कर रहे हैं।
आरोप और कानूनी स्थिति
निमिषा प्रिया पर आरोप है कि उन्होंने अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो मेहदी की हत्या की है। तलाल की हत्या के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और यमन की कोर्ट ने 2020 में फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद यमन की सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा। कई बार निमिषा ने राहत की गुहार लगाई, यहां तक कि यमन के राष्ट्रपति से भी मदद मांगी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
सैमुअल जैरोम का प्रयास
सैमुअल जैरोम, जो विमानन सलाहकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, निमिषा के परिवार के साथ काम कर रहे हैं। वे पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए निमिषा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। सैमुअल ने मृतक के परिवार और रिश्तेदारों से बात करने की कोशिश की है ताकि वे निमिषा को माफ कर दें। यमन के कानून के अनुसार, अगर पीड़ित परिवार दोषी को माफ कर देता है, तो फांसी की सजा से बचा जा सकता है।
हालांकि, मृतक के परिवार ने अभी तक माफी देने से इनकार किया है, इसलिए सैमुअल मृतक के परिवार को मना पाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वे ब्लड मनी का विकल्प भी देख रहे हैं, जिसमें दोषी परिवार पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में पैसा देता है। निमिषा के परिवार ने मृतक के परिजनों को करीब 10 लाख डॉलर (लगभग 8.5 करोड़ रुपये) की पेशकश की है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
भारत सरकार की मदद
निमिषा प्रिया के मामले में भारत सरकार भी सक्रिय है। सरकार ने यमन के स्थानीय अधिकारियों और निमिषा के परिवार के बीच संपर्क बनाए रखा है और हरसंभव मदद करने की कोशिश कर रही है। हालांकि अभी तक निमिषा को कोई स्थायी राहत नहीं मिल पाई है। भारत सरकार का उद्देश्य निमिषा को फांसी से बचाना है और इसके लिए कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है।
निमिषा प्रिया का परिचय
निमिषा प्रिया केरल के कोच्चि की रहने वाली हैं। उनकी मां प्रेमा कुमार मेड का काम करती हैं। निमिषा ने 19 साल की उम्र में 2008 में यमन का रुख किया था। वहां उन्होंने कुछ समय बिताया, फिर भारत वापस आ गईं और ऑटो चालक टॉमी थॉमस से शादी कर ली। इसके बाद वे दोनों यमन वापस चले गए। निमिषा की एक बेटी भी है, जो अब लगभग 13 साल की हो चुकी है।
केस की संवेदनशीलता
निमिषा का मामला केवल एक कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय और कुटनीतिक पहलुओं की भी गहरी छाप है। यमन का कानून ब्लड मनी और पारिवारिक माफी पर आधारित है, जो कई मामलों में मृत्युदंड को रोकने का जरिया बनता है। सैमुअल जैरोम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं और भारत सरकार के प्रयास इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निमिषा की फांसी की सजा न केवल उसकी जिंदगी से जुड़ा मुद्दा है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी एक चुनौती है। ऐसे मामलों में न्याय व्यवस्था, कूटनीति, और मानवीय संवेदनाएं मिलकर ही निर्णय की दिशा तय करती हैं।
भविष्य की संभावनाएं
यदि मृतक के परिवार द्वारा माफी मिल जाती है या ब्लड मनी पर सहमति बन जाती है, तो निमिषा की जान बच सकती है। अन्यथा, 16 जुलाई को फांसी की सजा लागू हो सकती है। इस बीच सैमुअल जैरोम के प्रयास और भारत सरकार की कूटनीतिक बातचीत निर्णायक साबित हो सकती है।
यह मामला न केवल निमिषा के लिए, बल्कि उन हजारों भारतीयों के लिए भी एक चेतावनी है जो विदेशों में काम करते हैं, कि विदेशी कानूनों और संस्कृति की समझ कितनी जरूरी है। इसके अलावा, यह सरकारों के लिए भी जरूरी है कि वे अपने नागरिकों की सुरक्षा और सहायता के लिए तत्पर रहें।
निष्कर्ष:
निमिषा प्रिया की फांसी की सजा को लेकर स्थिति बहुत गंभीर है। उनके पैरवीकर्ता और भारत सरकार लगातार प्रयासरत हैं कि उन्हें मौत के फंदे से बचाया जा सके। हालांकि मृतक परिवार की सहमति अभी तक नहीं मिली है, लेकिन बातचीत का सिलसिला जारी है। यह मामला न्याय, कूटनीति और मानवता के बीच जटिल संतुलन को दर्शाता है, जिसमें हर कदम महत्वपूर्ण है। 16 जुलाई का दिन निमिषा के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।