श्रीनगर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। इस हमले के बाद देश और दुनिया के लोग पाकिस्तान के नापाक इरादों के खिलाफ एकजुट हो गए हैं, और इस हमले की व्यापक निंदा की जा रही है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस जैसी वैश्विक शक्तियों ने इस हमले की कड़ी आलोचना की है और पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। लेकिन इस बीच एक अहम सवाल उठ रहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनती है, तो चीन किसका साथ देगा?
चीन और पाकिस्तान के बीच गहरे रिश्ते होने के कारण यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि चीन, पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो सकता है। पाकिस्तान ने पहले ही अपने साथी देशों जैसे इजिप्ट और तुर्की के बाद चीन से भी डिप्लोमैटिक समर्थन मांगा है। इस पर चीन ने भी पाकिस्तान के साथ अपनी एकजुटता दिखाई और कहा कि इस मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। यह बयान चीन के पाकिस्तान के प्रति समर्थन को और मजबूत करता है।
चीन और पाकिस्तान के रिश्ते का सच
चीन और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से ही रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गहरे रहे हैं। यह रिश्ता सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स भी चल रहे हैं। विशेष रूप से सीपेक (CPEC - China-Pakistan Economic Corridor) के तहत चीन ने पाकिस्तान में कई बड़े विकास कार्यों में निवेश किया है। सीपेक, पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक परियोजना है, क्योंकि इसके माध्यम से चीन को मध्य एशिया और पश्चिमी एशिया तक पहुंच मिलती है, और पाकिस्तान को आर्थिक लाभ होता है। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में कई इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें चीन का बड़ा निवेश है।
पाकिस्तान के मीडिया के अनुसार, पाकिस्तान चीन से बने हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य और हथियारों के क्षेत्र में भी गहरे संबंध हैं। इन संबंधों के कारण, जब भी पाकिस्तान को किसी संकट का सामना होता है, तो चीन हमेशा उसका साथ देता है। इस समय, जब पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की है, तो चीन ने भी पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिया है।
चीन के समर्थन का कारण
चीन का पाकिस्तान के प्रति समर्थन कई कारणों से हो सकता है। सबसे पहला कारण यह है कि चीन के लिए पाकिस्तान एक रणनीतिक साझेदार है। पाकिस्तान के जरिए चीन अपनी सीमाओं को पश्चिम में मजबूत कर सकता है, और सीपेक जैसे प्रोजेक्ट्स के माध्यम से पाकिस्तान में निवेश करके आर्थिक लाभ कमा सकता है। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ रिश्ते चीन की विदेश नीति का अहम हिस्सा हैं, और इसलिए चीन किसी भी परिस्थिति में पाकिस्तान को अकेला नहीं छोड़ता।
चीन और भारत के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में बहुत अच्छे नहीं रहे हैं, खासकर लद्दाख में सीमा विवाद के बाद। हालांकि, कुछ समय पहले भारत और चीन के बीच स्थिति में सुधार हो रहा था, लेकिन पाकिस्तान के प्रति चीन का समर्थन भारत के लिए एक और चुनौती बन सकता है। यह चीन के भारत के साथ रिश्तों में ताजे तनाव का कारण बन सकता है, क्योंकि भारत, पाकिस्तान से जुड़े किसी भी मुद्दे पर चीन के रुख को बेहद संवेदनशील तरीके से देखता है।
भारत-चीन के रिश्तों में तनाव
भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से ही जटिल रहे हैं, और यह तब और अधिक तनावपूर्ण हो गए जब 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच भिड़ंत हुई। इस घटना के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में एक ठहराव सा आ गया था, हालांकि कुछ समय से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत हो रही थी। लेकिन जब चीन पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा होता है, तो यह भारत के लिए एक नई चिंता का कारण बन जाता है। इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या चीन अपनी नीतियों के कारण भारत के साथ और भी संघर्ष में शामिल होगा?
पाकिस्तान के लिए चीन का महत्व
पाकिस्तान के लिए चीन का समर्थन महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान को भारत से आए किसी भी खतरे के खिलाफ चीन का समर्थन चाहिए। इसके अलावा, पाकिस्तान के लिए चीन एक ऐसा साझेदार है जो उसकी सैन्य और आर्थिक जरूरतों को पूरा कर सकता है। सीपेक जैसे प्रोजेक्ट्स से पाकिस्तान को भारी आर्थिक लाभ हो रहा है, और चीन की मदद से पाकिस्तान अपनी सैन्य क्षमताओं को भी बढ़ा सकता है।
निष्कर्ष
चीन और पाकिस्तान के बीच गहरे रिश्ते के कारण यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर कभी भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनती है, तो चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा हो सकता है। चीन का पाकिस्तान के पक्ष में बयान और सीपेक जैसी परियोजनाओं का समर्थन दोनों देशों के रिश्तों की मजबूती को दर्शाता है। हालांकि, भारत-चीन के रिश्तों में भी सुधार की उम्मीदें हैं, लेकिन पाकिस्तान के मामले में चीन का रुख भारत के लिए एक नई चुनौती बन सकता है। इस सूरत में, वैश्विक स्तर पर भारत को अपनी रणनीति में बदलाव लाने और चीन से निपटने के लिए नए उपायों पर विचार करने की आवश्यकता होगी।