महाशिवरात्रि भारत में सबसे शुभ त्योहारों में से एक है जिसका भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और शक्ति के मिलन का उत्सव है। शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। शास्त्रों के अनुसार इसकी रचना महाशिवरात्रि के दिन से शुरू हुई थी। शिवरात्रि का वर्णन गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण आदि में मिलता है।
जानकारी के अनुसार गण महादेव को प्रसन्न करने के लिए भक्त अपने-अपने तरीके से पूजा अर्चना करते हैं। 18 फरवरी को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। महाशिवरात्रि के पर्व का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति के मिलन की रात है। इस दिन व्रत रखने के लिए भक्तों द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है। शिवरात्रि को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पेश हैं शिवरात्रि की तीन प्रमुख कथाएं
महादेव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए
शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही महादेव पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग अर्थात अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। शिवलिंग का न आदि है न अंत। कहा जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए हंस रूपी ब्रह्माजी शिवलिंग के सबसे ऊपरी हिस्से को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी हिस्से तक भी नहीं पहुंच सका। दूसरी ओर भगवान श्री विष्णु वराह द्वारा शिवलिंग के निचले खंभे तक नहीं पहुंच सके।
बारह ज्योतिर्लिंगों की कथा :
शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन देश भर में बारह ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग शामिल हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्राकट्य के लिए भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
शिव और शक्ति मिलन
शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को माता पार्वती का विवाह महादेव के साथ हुआ।