सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में एक विशेष समुदाय के लोगों ने पुलिस को उल्टे दौड़ा लिया। वीडियो में दिखाया गया है कि रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) और राज्य पुलिस के कर्मियों को स्थानीय लोगों के एक समूह द्वारा पीछा करते हुए दिखाया गया। वीडियो के साथ कैप्शन में लिखा गया कि यह घटना राज्य में सांप्रदायिक अशांति का संकेत देती है और कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या शांति बहाल करने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करना जरूरी है। इस वीडियो का दावा है कि यह घटना पश्चिम बंगाल में हुई है, लेकिन इंडिया टीवी के फैक्ट चेक में यह दावा भ्रामक पाया गया है।
क्या किया गया दावा?
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में यह दावा किया गया कि मुस्लिम समुदाय के लोग पुलिस को दौड़ा रहे हैं, जिससे राज्य में तनाव बढ़ रहा है। वीडियो को फेसबुक पेज sneekmedia पर शेयर किया गया, जिसमें कहा गया कि स्थानीय लोगों के एक समूह ने पुलिस कर्मियों को उल्टे दौड़ा दिया। कैप्शन में यह भी लिखा गया था कि हिंदू समुदाय के लोग अब अपने स्थानीय रक्षा समूह बना रहे हैं और जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहे हैं, जिससे राज्य में बढ़ती सांप्रदायिक अशांति की बात कही जा रही थी।
वीडियो को देखकर यह संकेत दिया जा रहा था कि पश्चिम बंगाल में स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए। हालांकि, इस वीडियो के सच का पता लगाने के लिए फैक्ट चेक किया गया, जिससे सामने आई कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।
पड़ताल में क्या मिला?
जब वीडियो का स्क्रीनग्रैब लेकर गूगल लेंस पर सर्च किया गया, तो यह वीडियो काफी पुराना पाया गया। हमें गूगल में कई मीडिया रिपोर्ट्स मिलीं, जिनमें बताया गया कि यह वीडियो 2020 का है। मुंबई मिरर की रिपोर्ट में कहा गया कि यह घटना कोरोना काल के दौरान हुई थी। उस समय, लोकल बाजार में भीड़ जमा हो गई थी, जबकि कोरोना महामारी के कारण एक जगह पर ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी थी। इस कारण पुलिस ने वहां जाकर लोगों को घर जाने के लिए कहा। इसके बाद, भीड़ ने पुलिस का विरोध किया और पुलिस बल को दौड़ा दिया।
इस घटना के बारे में न्यूज एजेंसी एएनआई ने भी एक वीडियो साझा किया था, जिसमें पुलिस की कार्रवाई का विवरण था। इसके अलावा, पुलिस ने ट्वीट करके इस घटना में हुई कार्रवाई की जानकारी दी थी और कहा था कि इस मामले में कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए थे।
क्या निकला निष्कर्ष?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा वीडियो दरअसल 2020 का एक पुराना वीडियो था, जिसे गलत तरीके से वर्तमान में घटित घटना के रूप में पेश किया जा रहा है। इस वीडियो के साथ जो दावा किया गया था कि यह घटना पश्चिम बंगाल में हुई और राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता की बात की जा रही है, वह पूरी तरह से भ्रामक है। इस वीडियो का सच सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि यह वीडियो कोरोना काल में लोकल बाजार में हुई एक घटना का हिस्सा था और इसका किसी भी सांप्रदायिक घटना से कोई संबंध नहीं है।
इस प्रकार के भ्रामक वीडियो और खबरें समाज में तनाव और भ्रम पैदा कर सकती हैं। हमें हमेशा सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली खबरों की सत्यता की जांच करनी चाहिए, ताकि हम गलत जानकारी के शिकार न हों। फैक्ट चेकिंग और जानकारी के सही स्रोतों से जांचने से हम इन भ्रामक खबरों से बच सकते हैं।